भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू ने बेहतर शेल्फ लाइफ के साथ कम बीज, बहुत मीठी शरीफा किस्म विकसित करने के लिए 1986 में एक पहल शुरू की। अत:, अनेक संख्या में अंतर एवं अंतरा-शरीफा की संकर प्रजातियों को विकसित कर उनका मूल्यांकन किया गया और सन् 1977 में एक ‘अर्का सहन’ नाम के साथ एक संकर का विचोमन किया गया। अर्का सहन के फल बहुत ही शानदार होते हैं क्योंकि उनमें कम एवं छोटे बीज होते हैं (9/100 ग्राम फल वजन), उनमें मीठापन (>32°B: 22.8% कुल शर्करा) होता है और वह धीमी गति से पकते हैं (5-6 दिन)। इसका गूदा बर्फ की तरह सफेद आहारीय और रस युक्त होता है तथा उसकी सुगंध मध्यम प्रकार की है। पोषण की दृष्टि से, अर्का सहन के 100 ग्राम गूदे में 2.49 कच्चा प्रोटीन, 42.29 मि. ग्रा. फास्फोरस और 225 मि. ग्रा. कैल्शियम होता है, जो कि सामान्य शरीफा में क्रमश: 1.33 ग्राम, 17.05 मि. ग्रा. और 159 मि. ग्रा. है। यह एक अंतर-संकर प्रजाति है जिसे प्रायद्वपीय जैम (एटेमोया) और मैमथ (शरीफा) के परस्पर संकरण से विकसित किया गया है।
यह संकर काफी संख्या में स्वत: उपजाऊ पुष्प उत्पादित करता है। जैसा कि शरीफे की अन्य किस्मों के संबंध में है, अर्का सहन के कुछ पुष्प (लगभग 1-2%) विभिन्न समयों पर परिपक्व होने वाले नर एवं मादा पुष्पों के कारण फलों में परिवर्तित हो जाते हैं और इसके अलावा उनमें कीट सीमित मात्रा में होते हैं तथा पुष्प वायु से परागित होते हैं। अत:, इसकी फसल संभाव्यता का आकलन नहीं लगाया जा सकता है और यदि लगाया भी जाया सकता है तो वह केवल प्राकृतिक परागण के आधार पर ही किया जा सकता है। इसके विकल्प के रूप में हस्त परागण, जो कि एक काफी सरल, त्वरित और किफायती विधि है, हस्त परागण का अंगीकरण किया गया ताकि न केवल उच्च उत्पादकता हासिल की जा सके, बल्कि बड़े आकार के फल भी प्राप्त किए जा सकें।
वर्ष 2003 और 2004 में दिन की विभिन्न अवधियों के दौरान हस्त परागण का प्रयास किया गया जिसमें 5 परागण स्रोतों का उपयोग किया गया। प्रात:काल 6 बजे से 9.30 के बीच किए गए हस्त परागण में सबसे अच्छे परिणाम पाए गए। अर्का साहन की तुलना में, शरीफा (सीताफल/शरीफा) परागण के उपयोग में बेहतरीन परिणाम प्राप्त किए गए।
80% परागित पुष्प ऐसे फल उत्पादित करते हैं जो फसल कटाई तक लगते रहते हैं और खुले में परागित फलों की तुलना में उनका वजन 90 प्रतिशत अधिक होता है (450-500 ग्राम) और उनमें एक जैसी आकृति होती है तथा उनके खाद्य फल गुणों में कोई नुकसान नहीं होता है। चूंकि अर्का सहन के पुष्प बड़े होते हैं, इसलिए उनमें हस्त-परागण आसानी और शीघ्रता से किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति प्रति घंटा 150-200 पुष्पों का परागण कर सकता है। वृक्षों की 8 वर्षों की अवस्था के उपरांत अर्का सहन का एक वृक्ष 40-45 कि. ग्रा. फल उत्पादित कर सकता है, इसलिए प्रत्येक वृक्ष में लगभग 150 पुष्पों
का हस्त-परागण किया जाना चाहिए ताकि 25 टन प्रति हैक्टे. की अनुमानित फसल हासिल की जा सके। कृत्रिम परागण से विकसित फलों का बाजार मूल्य अधिक होगा। फलस्वरूप, कृत्रिम परागण विधि वाणिज्यिक रूप से लाभप्रद है।
अर्का सहन के फल बहुत ही शानदार एवं अनेक मायनों में उपयोगी होते हैं, क्योंकि उनमें कम एवं छोटे बीज होते हैं (9/100 ग्राम फल वजन), उनमें मीठापन (>32°ब्रिक्स; 22.8% कुल शर्करा) होता है और वह धीमी गति से पकते हैं (5-6 दिन)। जैसा कि अन्य अनोना फलों के संबंध में है, अर्का सहन के कुछ पुष्प (लगभग 1-2%) विभिन्न समयों पर परिपक्व होने वाले नर एवं मादा पुष्पों के कारण फलों में परिवर्तित हो जाते हैं। इसके अलावा, उनमें कीट सीमित मात्रा में होते हैं तथा पुष्प वायु से परागित होते हैं। अत:, इसकी फसल संभाव्यता का आकलन नहीं लगाया जा सकता है और यदि लगाया भी जा सकता है तो वह केवल प्राकृतिक परागण के आधार पर ही किया जा सकता है। इसके विकल्प के रूप में, विभिन्न परागण स्रोतों की जांच कर एक सरल हस्त परागण विधि विकसित की गई। अनोना स्क्वामोसा (सीताफल या शरीफा) के परागण से विकसित अर्का सहन के फल-स्थापन, आकार और आकृति की दृष्टि से, प्राकृतिक फल स्थापन सहित अन्य परागण स्रोतों से उत्पादित फलों की तुलना में काफी बेहतर पाए गए। सीताफल के परागण से 86 प्रतिशत का उच्च फल स्थापन प्राप्त किया गया, जबकि अर्का सहन परागण और प्राकृतिक फल स्थापन से क्रमश: 55.2 प्रतिशत और 1.4 प्रतिशत का फल स्थापन पाया गया। इसके अलावा, सीताफल परागण से उत्पादित फलों का आकार (432 ग्राम प्राकृतिक रूप से स्थापित फलों के औसतन वजन (206 ग्राम) की तुलना में अधिक था। लेकिन अन्य परागण स्रोतों, यानी; ए. रेटिकुलेटा, ए. ऐटीमोया, ए. चेरीमोया में संतोषजनक परिणाम नहीं पाए गए।
हस्त-परागण प्रात:काल से लेकर 9.30 बजे तक किया जाना चाहिए, जैसा कि नीचे दर्शाया गया है।
1. पिछले दिन खिले पुष्पों से एक प्लास्टिक कप में शरीफा (सीताफल) के पराग को इकट्ठा करें।
2. कप को कमीज की जेब में रखें और कप में एक स्वच्छ एवं सूखा, रंग लगाने वाला ब्रश (2 या सं.) डुबोएं।
3. पराग से सने ब्रश को अर्का सहन के पुष्पों के स्टिगमा पर समान रूप से लेप लगा दें। हस्त-परागण सरल एवं त्वरित तकनीक है, जिससे न केवल फलों का स्थापन बेहतर होता है बल्कि उनके खाद्य गुणों में कोई नुकसान न होने के साथ-साथ बड़े आकार, आकर्षक तथा समान आकृति के फल प्राप्त होते हैं। अत:, कृत्रिम परागण के द्वारा फल की उपज को काफी ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। अर्का साहन का वृक्ष आठवें वर्ष से 40-45 कि. ग्रा. वजन के फल उत्पादित कर सकता है और इसलिए 25 टन प्रति हैक्टे. की अनुमानित उपज प्राप्त करने हेतु प्रत्येक वृक्ष में लगभग 150 पुष्पों का हस्त-परागण किया जाना चाहिए। हस्त-परागण से विकसित फलों का बाजार मूल्य अधिक होगा।
हस्त-परागण से प्राप्त फल