संस्थान ने लखनऊ, नागपुर, रांची, गोधरा, चेट्टल्ली और गोनीकोप्पल में परीक्षण केंद्र स्थापित कर अपने अनुसंधान कार्यकलापों को राष्ट्र के हर कोने तक फैलाया है। गत वर्षों के दौरान इन परीक्षण केंद्रों का आकार बढ़ा है और आज वे स्वतंत्र संस्थानों के रूप में कार्य कर रहे हैं, हालांकि चेट्टल्ली और गोनीकोप्पल में स्थित केंद्र अभी भी संस्थान के नियंत्रण में हैं। वर्तमान में, भा.बा.अनु.सं. (आईआईएचआर) का मुख्य कार्यालय हेसरघट्टा, बेंगलुरू में 263 हेक्टेयर भूमि में स्थित है। संस्थान के दो क्षेत्रीय परीक्षण केंद्र हैं, एक ओडिशा के भुवनेश्वर में तथा दूसरा कर्नाटक के चेट्टल्ली में। संस्थान के अंतर्गत दो कृषि विज्ञान केंद्र भी हैं, जो दोनों कर्नाटक के कोडगु जिले के अंतर्गत गोनीकोप्पल और तुमकूरु जिले के अंतर्गत हिरेहल्ली में स्थित हैं। इसके अलावा, अखिल भारतीय समन्वित उष्णकटिबंधीय फल अनुसंधान परियोजना का परियोजना समन्वयन प्रकोष्ठ भी बेंगलुरू संस्थान में स्थित है।
संस्थान की वास्तविक प्रगति को दो चरणों में देखा जा सकता है। प्रथम चरण 1970 से 1990 के बीच का है, जब भूमि और भवनों के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया था। इस चरण के दौरान अनुसंधान करने के लिए तथा प्रयोगशाला भवनों, सहायक भवनों और अन्य आवश्यक कार्यालय भवनों के लिए क्षेत्रफल निर्धारित किया या। तद्नुसार, संपूर्ण कृषि-योग्य भूमि को अनुसंधान करने के लिए नौ सुव्यवस्थित खंडों में विभाजित किया गया और प्रयोगशालाओं के साथ विभिन्न प्रभागों एवं विभागों के लिए स्वतंत्र भवनों का निमार्ण कराया गया।
संस्थान की वास्तविक प्रगति का दूसरा चरण 1990 के पश्चात का है, जिस दौरान उपकरणों और संरचनाओं के आधार पर अत्याधुनिक विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा सुविधाओं के सृजन पर विशेष जोर दिया गया था। वर्तमान में संस्थान में 11 सुव्यवस्थित प्रभाग हैं, अर्थात फल फसल प्रभाग, सब्जी फसल प्रभाग, पुष्प विज्ञान एवं औषधीय फसल प्रभाग, मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान प्रभाग, पादप कार्यिकी विज्ञान और जैवरसायन विज्ञान प्रभाग, पादप आनुवंशिक संसाधान प्रभाग, जैवप्रौद्योगकी प्रभाग, सस्योत्तर प्रौद्योगिकी एवं कृषि अभियांत्रिकी प्रभाग, पादप रोग विज्ञान प्रभाग, कीट विज्ञान एवं सूत्रकृमि विज्ञान प्रभाग और समाज विज्ञान एवं प्रशिक्षण प्रभाग हैं। संस्थान में 65 से अधिक प्रयोजन-लक्षित प्रयोगशालाएं हैं जिनमें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, अल्ट्रा सेंट्रीफ्यूज, एचपीएलसी, जीएलसी, एलसी काउंटर आदि जैसे अत्याधुनिक उपकरण स्थापित हैं। संस्थान में बुनियादी ढांचे की एक श्रृंखला है, जिसमें पॉली हाउस और नेट हाउस, ग्रोथ चेम्बर, मिस्ट चेम्बर, कोल्ड स्टोरेज सुविधाएं, जीन बैंक, वीडियो कन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के साथ लोकल एरिया नेटवर्क, बीज प्रसंस्करण और नर्सरी इकाइयां आदि स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त, संस्थान में एक अत्याधुनिक पुस्तकालय, एक सम्मेलन कक्ष, सभागार, प्रशिक्षण छात्रावास, बैंक, अस्पताल, आवश्यक आवासीय कमरे तथा कुछ अन्य सुविधाएं स्थापित हैं।
संस्थान में एक कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र (एटीआईसी) भी स्थापित है, जो कि संस्थान द्वारा विकसित सूचना और प्रौद्योगिकियों के प्रसार के लिए एक सिंगल विंडो एजेंसी है। संस्थान द्वारा विकसित समस्त प्रौद्योगिकीय उत्पादों और लोकप्रिय प्रकाशनों को कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र के माध्यम से किसानों तथा इच्छुक लोगों को बेचा जाता है।
संस्थान का मजबूत पक्ष उसका बेहतरीन सुप्रशिक्षित मानव संसाधन है। वर्तमान में, संस्थान में 150 वैज्ञानिकों, 218 तकनीकी कार्मिकों, 92 प्रशासनिक कार्मिकों और 159 सहयोगी कर्मचारियों सहित कुल 619 कार्मिक कार्यरत हैं। संस्थान के प्रमुख, एक निदेशक हैं जिन्हें विभिन्न प्रभागों द्वारा सहायता दी जाती है। मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, जो कार्यालय के प्रधान हैं तथा वरिष्ठ वित्त एवं लेखा अधिक द्वारा लेखापरीक्षा और लेखाओं का अनुवीक्षण करने हेतु निदेशक को सहायता दी जाती है। डॉ. एम. आर. दिनेश संस्थान के निदेशक हैं।
संस्थान के प्रारंभिक वर्षों में उसका मुख्य अनुसंधान कार्य फलों, सब्जियों, सजावटी एवं औषधीय और संगधीय पादपों में उच्च उपज वाली किस्में विकसित कर तथा बागवानी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु उन्नत उत्पादन प्रौद्योगिकियों को विकसित कर बागवानी फसल किस्मों की उपज बढ़ाने पर केंद्रित था। बदलते समय और उत्पादकता, फसल उत्पादन, फसल संरक्षण और फसल उपयोग के क्षेत्रों में नई उभरती चुनौतियों के कारण जैविक एवं अजैविक दबावों में प्रजननक्षम एफ1 संकरों के लिए प्रजननक्षम किस्में विकसित करने, एकीकृत नाशीजीव और रोग प्रबंधन प्रौद्योगिकियां विकसित करने, संसाधनों के इष्टतम उपयोग की दिशा में एकीकृत जल और पोषक प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित करने, सस्योत्तर नुकसानों को कम करने के लिए सस्योत्तर प्रबंधन विधियां विकसित करने और बागवानी फसलों का मूल्यवर्धन करने तथा उपज बढ़ाने, फसलों को नाशीकीटों, रोगों और विषाणुओं से संरक्षित करने, तथा फसल उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने हेतु प्रमुख अनुसंधान क्षेत्रों, जैसे कि हाई-टेक बागवानी, परिशुद्ध कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकीय पहलों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। बागवानी में स्थानीय विकास के विभिन्न लक्ष्यों व उद्देश्यों को एक साथ समाकलित कर, आजीवविका सुरक्षा, आर्थिक विकास तथा पोषाहार सुरक्षा प्रदान कर, जो अनेक प्रत्यक्ष कारकों के कारण समय-समय पर चुनौती पेश करते रहे हैं, आईआईएचर, बेंगलुरू निम्नलिखित अधिदेश के साथ फलों, सब्जियों, सजावटी एवं संगधीय पादपों और खुम्ब पर अनुसंधान कार्य करता आ रहा है :
अधिदेश
- , सब्जियों, सजावाटी, औषधीय एवं संगधीय पादपों तथा खुम्ब जैसी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय बागवानी फसलों की उत्पादकता और उपयोग को बढ़ाने हेतु कार्यनितियां विकसित करने के लिए मौलिक एवं अनुप्रयुक्त अनुसंधान करना।
- बागवानी से संबद्ध वैज्ञानिक सूचना के संग्रह-स्थल के रूप में कार्य करना।
- बागवानी उत्पादन के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकयों में वैज्ञानिक मानवशक्ति के उन्नयन के लिए प्रशिक्षण हेतु एक केंद्र के रूप में कार्य करना, और
- उपरोक्त उद्देश्यों को हासिल करने में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से सहयोग स्थापित करना।
दो बार, यानी वर्ष 1999 और 2011 के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने आईआईएचआर, बेंगलुरू को सर्वश्रेष्ठ संस्थान पुरस्कार प्रदान किया। संस्थान को यह पुरस्कार प्रगति व उपलब्धियां हासिल करने हेतु संस्थागत पुनर्गठन करने तथा बागवानी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए दिया गया था। संस्थान की अनेक प्रमुख उपलब्धियां हैं - स्नातकोत्तर शिक्षा के भाग के रूप में, छ: विश्वविद्यालयों द्वारा संस्थान को बागवानी में स्नातकोत्तर अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र में रूप में मान्यता दी गई है, सब्जी फसल किस्मों के प्रजनक बीजों के उत्पादन और आपूर्ति के लिए मुख्य केंद्र ने अनुसंधान और मानव संसाधन विकास के लिए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों के साथ संपर्क स्थापित किए हैं। संस्थान के पराग क्रायो-बैंक को जैवप्रौद्योगिकी और सस्योत्तर प्रबंधन में उत्कृष्ट टीम के रूप में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स 2001 से सम्मानित किया गया, संस्थान में प्रौद्योगिकियों के उन्नयन के लिए उत्पाद विकास तथा उद्यमशीलता विकास के लिए एक प्रयोगशाला है, और टिशु कल्चर पादपों में गुणवत्ता नियंत्रण एवं विषाणु निदान के लिए डीबीटी-भाकृअनुप-राष्ट्रीय सुविधा-केंद्र तथा बीजों और रोपण सामग्रियों के लिए पादप-स्वच्छता प्रमाणन एजेंसी स्थापित है।
उपरोक्त उद्देश्य के साथ गत चार दशकों के दौरान किए गए अनुसंधान ने 170 से अधिक किस्मों और संकरों के विमोचन और अनेक संख्या में स्थायी उत्पादन, संरक्षण और सस्योत्तर प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को विकसित किए जाने के आधार पर, उल्लेखनीय लाभ प्रदान किए हैं।
फल फसलों में, संस्थान ने पपीते में 3 किस्मों, आम में 5 संकरों, अमरूद में 3 किस्मों, अंगूर में 5 संकरों; अनार, आंवाला, बेर और पैशन फ्रूट प्रत्येक में एक-एक किस्म का विमोचन किया है। बड़े एवं गोलाकर फल एवं कम बीजों के साथ हाल ही में विमोचित उच्च उपजवाला गुलाबी गुदे वाला अर्का प्रभात पपीता संकर; लाल गुदा वाला अमरूद संकर, अर्का किरन और सीताफल का संकर, अर्का सहन, काफी उन्नत पाए गए हैं और ये किस्में व संकर खेतिहर समुदाय में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं।
अभी तक संस्थान ने वाणिज्यिक खेती के लिए नाशीजीवों और रोगों से प्रतिरोधी 24 सब्जी फसलों में 60 उच्च उपज वाली खुले में परागित किस्मों और 15 एफ1 संकरों को विकसित और विमोचित किया है। इसके अलावा, तरबूज में अर्का मणिक; जो नाशीजीवों और रोगों के त्रिगुणित प्रतिरोधी है, भिंडी में अर्का अनामिका; जो पीला तना मोजेक विषाणु से प्रतिरोधी है और फ्रास बीन में अर्का कोमल; जो रतुआ रोग से प्रतिरोधी है को विकसित और विमोचित कर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया गया है। टमाटर में अर्का विकास और प्याज में अर्का कल्याण एवं अर्का निकेतन जैसी उच्च उपज वाली किस्मों के बेहतरीन परिणाम पाए गए हैं। वर्तमान वर्षों में संस्थान ने टमाटर पर्ण कुंचन विषाणु और जीवाण्विक उकठा, दोनों से प्रतिरोधी टमाटर संकर अर्का अनन्या, घुन और विषाणुओं के प्रति सहनशील मिर्च का संकर अर्का मेघना, मिर्च में चूर्णिल फफूंद से सहिष्णु अर्का हरिता और अर्का सुफल किस्मों, उच्च उपजवाला नर बंध्यता आधारित मिर्च संकर अर्का श्वेता, जीवाण्विक उकठा से प्रतिरोधी बैंगन संकर, अर्का आनंद, नर बंध्यता आधार पर उच्च उपजवाला प्याज का संकर अर्का लालिमा एवं अर्का कीर्तिमान को विमोचित किया है। ये कुछ ऐसी किस्में व संकर हैं, जिनका उत्पादन और उच्च आर्थिक लाभों पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
पुष्प फसलों के क्षेत्र में, संस्थान ने ग्लेडियोलस, गुलदाउदी, बोगेनविला, गुडौल, रजनीगंधा, गुलाब, चाइना एस्टर, गुलनार, जर्बेरा और आबोली में उन्नत किस्में विकसित की हैं। चाइना एस्टर किस्में पूर्णिमा, कामिनी, वाइलेट कुशन और शशांक, रजनीगंधा की किस्में, श्रृंगार, सुवासिनी, प्रज्वल और आबोली किस्म अर्का अंबरा किसानों में बहुत लोकप्रिय हो चुकी हैं।
खुम्ब के क्षेत्र में, ऑइस्टर खुम्ब का एक बीजाणुरहित मुटेंट, दूधिया खुम्ब, ज्यूज ईयर खुम्ब और एक औषधीय खुम्ब को विकसित किया गया है, जिनमें निर्यात किए जाने की क्षमता है।
उत्पादन प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में, संस्थान ने केला और अनन्नास के उच्च सघन रोपण की प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया है। इन प्रौद्योगिकियों को उपरोक्त फसलों के लगभग सभी फल उत्पादकों द्वारा अंगीकृत किया जा रहा है। संस्थान द्वारा चिह्नित एवं विमोचित अंगूर का मूलवृन्त ‘डॉगरिज’ ने शुष्क भूमि और जटिल मृदाओं में अंगूर की खेती में क्रांति ला दी है। विभन्न फल, सब्जी और सजावटी फसलों के लिए संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु एकीकृत जल और पाषण प्रबंधन समय-सारणियों, जैसे कि ड्रिप सिंचाई, उर्वरीकरण, सक्रिय जड-क्षेत्र में उर्वरक का अनुप्रयोग, आदि का मानकीकरण किया गया। संस्थान ने उर्वरकों की इष्टतम सिफारिश के लिए पत्ती एवं पर्णवृंत नैदानिकों का भी मानकीकरण किया है। हाल ही के वर्षों में संस्थान ने सूक्ष्म पोष्कतत्वों के पर्णिल पोषण के लिए प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया है और उच्च एवं गुणवत्ता उपज के लिए आम स्पेशल, केला स्पेशल, नींबूवर्गीय स्पेशल और सब्जी स्पेशल को व्यावसायिक रूप से विमोचित किया है। इन प्रौद्योगिकियों का पहले ही व्यावसायीकरण किया गया है और इन्हें समूचे खेतिहर समुदाय को उपलब्ध कराया जा रहा है। स्पंजी टिशु, जो कि आम में एक मुख्य समस्या थी, की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार कारकों को अभिज्ञात कर इससे निजात पाने के लिए संगत सिफारिशें की गई हैं। संस्थान ने पीएसबी, ऐजोस्पिरिल्लुम, वीएएम जैसी जैव उर्वरकें भी विकसित की हैं।
पौध संरक्षण के क्षेत्र में, संस्थान ने टमाटर फल बेधक को नियंत्रित करने के लिए अफ्रीकी गेंदा जैसी जाल फसलों, गोभी फसलों में हीरक पृष्ठ शलभ को नियंत्रित करने के लिए सरसों तथा प्रमुख नाशजीवों को नियंत्रित करने के लिए नीम साबून और करंज साबुन जैसे पादप उत्पादों एवं वनस्पति पदार्थों का प्रयोग करते हुए नाशीजीव प्रबंधन प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया है। मृदा-जनित रोगों और सूत्रकृमियों को नियंत्रित करने के लिए जैव-नियंत्रण कारकों और सूक्ष्म जीवाणुओं, जैसे कि ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनस फ्लोरोसेंस, पेसिलोमाइसस लिलासिनस आदि का मानकीकरण किया गया है। एक फेरोमोन जाल का मानकीकरण कर आम फल-मक्खी, जो आम के निर्यात में बाधा डालने का एक प्रमुख कारक बन गया था, का समाधान कर लिया गया है। इसके साथ-साथ, विभिन्न विषाणु रोगों के लिए एकीकृत रोग प्रबंधन प्रोटोकॉल और नैदानिक किटें भी विकसित की गई हैं।
सस्योत्तर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, संस्थान ने विभिन्न तापमानों पर भंडारण अवधि को बढ़ाने हेतु प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया है तथा संशोधित वातावरणीय पैकिंग और कसकर आवरित करने की प्रौद्योगिकी प्रोटोकॉल का मानकीकरण किया है। उत्पाद विकास के माध्यम से मूल्यवर्धन हमेशा ही संस्थान का एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र रहा है, जिसमें संस्थान ने ओस्मो-निर्जलीकृत उत्पाद बनाने के लिए आम स्क्वैश, पैशन फ्रूट सक्वैश, आंवाला स्क्वैश, पैशन फ्रूट केला सम्मिश्रणों जैसे फलों से पेय, अनेक प्रकार की पाक्य चटनी एवं प्यूरी, सब्जियों के लेक्टिक अम्ल के किण्वन तथा न्यनूतम प्रसंस्कृत खाद्यों के लिए प्रोटोकॉलों का मानकीकरण किया। प्रमुख क्षेत्रों और परिशुद्ध प्रौद्योगिकी में, संस्थान ने टमाटर, रंगीन शिमला मिर्च, खीरा और खरबूजे के उत्पादन के लिए, संरक्षित स्थितियों के तहत, प्रौद्योगिकी का माननकीकरण किया। प्रो ट्रे का प्रयोग करते हुए नर्सरी पौधों के उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी का और अधिक उन्नयन किया गया। जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, विभिन्न फसलों के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रोटोकॉल और अनेक विषाणुओं के लिए न्यूक्लीक एसिड प्रोब्स विकसित किए गए। जननद्रव्य के लक्षणीकरण और प्रलेखीकरण के लिए डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीकें भी विकसित की गई हैं।
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