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खरीफ़ 2019 के दौरान और पछेती खरीफ़ में भिण्डी की एफ1 संकर किस्म “अर्का निकिता” के ....

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  खरीफ़ 2019 के दौरान और पछेती खरीफ़ में भिण्डी की एफ1 संकर किस्म “अर्का निकिता” के जैविक उत्पादन की सफल गाथा

श्री धनंजय, जो बेंगलूरु ग्रामीण जिले के हेसरघट्टा के गोपालपुरा गाँव का प्रगतिशील किसान हैं, मौसम और बाज़ार की माँग के आधार पर अपने दो एकड़ के खेत में वर्ष भर जैविक विधि में सभी प्रकार की सब्जियाँ (बैंगन, मिर्ची, भिण्डी, पालक, धनिया, मक्का, शिशु मक्का, सेमफली और अन्य फलियाँ) उगाते हैं। पहले एक बार उन्होंने “भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. की सब्जियों की किस्में/संकर तथा अन्य प्रौद्योगिकियाँ” विषय पर संस्थान में आयोजित एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया था। वे अपने खेत में भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. की सब्जियों की उन्नत किस्में/संकर उगाने के लिए बहुत ही उत्सुक थे और वे निरंतर संस्थान के वैज्ञानिकों (डॉ. वी. शंकर, डॉ. एम. पिच्चैमुत्तु एवं डॉ. अचला परिपूर्णा) के संपर्क में रहे।

 

भिण्डी की एफ1 संकर किस्म “अर्का निकिता” के लाभों (अगेती पुष्पण, उच्च उपज, गहरे हरे, मध्यम, चिकने और कच्चे फल, श्रेष्ठ पाक-गुणवत्ता, प्रतिऑक्सीकारक और खनिजों से भरपूर तथा पीली शिरा मोज़ेक विषाणु का प्रतिरोधी) के बारे में जानने के बाद उन्होंने इस संकर किस्म को अपने खेत में उगाना चाहा। प्रदर्शन के लिए संस्थान ने बीज प्रदान किए और बुवाई खरीफ़ 2019 और पछेती खरीफ़ में की गई। यह किसान भिण्डी की खेती बिना किसी रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों के प्रयोग से जैविक रुप से करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें जैविक रूप से उगाई गई सब्जियों के लिए बाज़ार में उच्च कीमत मिलती थी। इसलिए उनके अनुरोध के आधार पर सब्जियों को सफलतापूर्वक उगाने के लिए संस्थान ने सभी जैविक उत्पादन-सामग्रियाँ (अर्का सूक्ष्मजीवीय मिश्रण, नीम एवं करंज साबुन) प्रदान कीं। संस्थान के उत्पादों के अलावा वे जैवउद्दीपकों, जैसे वानस्पतिक दवाइयाँ, पंचगव्य, दशगव्य, गाय के गोबर की स्लरी, जीवामृत और अग्निस्त्र आदि अपने खेत में ही तैयार करते थे और फसल की वृद्धि को बढावा देने एवं कीटों व रोगों के नियंत्रण के लिए पर्ण-पोषण के रूप में प्रयोग करते थे। खेत की तैयारी के समय उन्होंने जैविक खादों, जैसे अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, नीम की खली, करंज की खली, केंचुआ खाद और खेत के अपशिष्टों का प्रारंभ में प्रयोग किया। बाद में जब भी आवश्यकता पड़ी उन्होंने गाय के गोबर की स्लरी, गोमूत्र, लकड़ी के क्षार और जड़ीबूटियों के सत्त का मिट्टी पर प्रयोग किया।

 

किसान को बहुत ही अच्छी फल-उपज मिली, जैसे खरीफ़ के मौसम में 5.59 टन/एकड़ और पछेती खरीफ़ में 5.86 टन/एकड़। अंतिम तुड़ाई तक वे बाज़ार में अपने उत्पाद रु. 35/- प्रति किलो के हिसाब से बेच सके। बेहतर फल-आकार, फल-वज़न, उपज, पीली शिरा मोज़ेक विषाणु का कम प्रकोप, उच्च कीमत एवं अधिक शुद्ध आय के संदर्भ में अर्का निकिता के निष्पादन से वे बहुत ही खुश थे। चार महीने की फसल-अवधि में उन्हें औसतन रु. 1,38,565/- की शुद्ध मुनाफ़ा मिली। लागत-लाभ अनुपात 1:3.04 है। भिण्डी की मुख्य फसल के अलावा उन्होंने भिण्डी के खेत में अंतर्वर्ती फसल के रूप में आसपास के मेंड और नालों में के चारों ओर पालक (अर्का अनुपमा) भी उगाया। इससे उन्हें प्रति एकड़ से पालक के 3900 बंडल मिले और इसे उन्होंने रु. 10/- प्रति बंडल के हिसाब से बेचे। इस तरह उन्हें प्रति एकड़ से रु. 39,000 की अतिरिक्त आय मिली। इस प्रकार उनकी शुद्ध आय 120-135 दिनों में 1,38,565/- से
रु. 1,68,565
तक बढ़ी। सब्जियों की इस नई संयोजित कृषि प्रणाली (भिण्डी एवं पालक) से वे अत्यंत खुश नज़र आए। उन्होंने अधिक उपज एवं आय के लिए भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. की किस्मों/संकरों के संयोजित खेती हेतु गाँव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया।