भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. एवं उप महनिदेशक (बागवानी विज्ञान) द्वारा 12.05.2020 को “कोविड के बाद बागवानी क्षेत्र को बढावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रचार-प्रसार” विषय पर वेबिनार आयोजित
भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. एवं उप महनिदेशक (बागवानी विज्ञान) द्वारा 12.05.2020 को “कोविड के बाद बागवानी क्षेत्र को बढावा देने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रचार-प्रसार” विषय पर वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें में कृषि विश्वविद्यालय, बेंगलूरु; कृषि विश्वविद्यालय, रायचूर; बागवानी विश्वविद्यालय, बागलकोट; कृषि एवं बागवानी विश्वविद्यालय, शिवमोग के विस्तार निदेशकों; बेंगलूरु; पुणे, जबलपुर; कोलकत्ता, हैदरबाद; कानपुर; लुधियाना के कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थानों (अटारी) के निदेशकों और इन अटारियों के तहत आने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों; भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं., बेंगलूरु के निदेशक एवं वैज्ञानिकों ने भाग लिया। कुल 255 प्रतिभागियों ने इस बैठक में भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. टी.एस. अघोरा, प्रधान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी, पी.एम.ई. कक्ष के स्वागत से हुआ। डॉ. एम.आर. दिनेश, निदेशक, भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. ने कहा कि किसानों की आय को बढाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से अद्यतन तकनीकियों/उच्च उपजवाली किस्मों और संकरों का प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है। मौजूदा माँगों की पूर्ति के लिए गुणवत्तायुक्त बीजों और रोपण-सामग्रियों का उत्पादन बढाना चाहिए।
इस बैठक में चार प्रौद्योगिकियों, जैसे आम का नया संकर ‘अर्का उदय’, आम का सघन बागान, मिर्ची के संकर और मिर्ची में समेकित विषाणु-रोग प्रबंधन, का परिचय करवाया गया।
डॉ. एम. शंकरन, प्रधान वैज्ञानिक ने आम के संकर ‘अर्का उदय’ की महत्वपूर्ण विशेषताओं पर प्रकाश डाल। यह संकर जुलाई के आखिरी और अगस्त के पहले सप्ताह तक तुड़ाई के लिए तैयार होता है। यह प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें 24o ब्रिक्स टीएसएस होता है और इसका गूदा दृढ होता है। इसके आठ वर्ष के एक पेड़ से 35-40 कि.ग्रा. की उपज प्राप्त की जा सकती है।
डॉ. रेजु एम. कुर्यन, प्रधान वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, फल फसल विभाग ने उच्च उपज के लिए 4 मी. x 2.5 मी. की दूरी और छत्र-प्रबंधन के साथ अल्फोंसो आम की सघन बागान प्रणाली पर प्रस्तुति दी। इस विधि में प्रति हेक्टेयर में 1000 पौधों का समावेश किया जा सकता है। यह दिखाया गया कि पाँच वर्ष का एक पेड़ 10 कि.ग्रा. की उपज दे सकता है, जो 10 टन/हे. होती है।
डॉ. के. माधवी रेड्डी, प्रधान वैज्ञानिक ने संस्थान द्वारा विकसित मिर्ची की किस्मों/संकरों की मुख्य विशेषताओं पर प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा की हाल ही के वर्षों में मध्य और दक्षिण भारत में मिर्ची उगानेवाले प्रमुख क्षेत्रों में पत्ती मोड़क विषाणु का तीव्र प्रकोप देखा गया है। इसको देखते हुए भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. ने पत्ती मोड़क विषाणु के प्रतिरोधी दस अलग-अलग संकर विकसित किए, जो विभिन्न बाज़ार क्षेत्र के लिए उपयुक्त हैं। इन संकरों के बीजोत्पादन का कार्य प्रारंभ किया गया है और दिसंबर 2020 तक इन संकरों का प्रदर्शन किया जाएगा।
डॉ. एम. कृष्णा रेड्डी, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी अध्यक्ष, पादप रोग विज्ञान विभाग ने मिर्ची में समेकित विषाणु रोग प्रबंधन पर प्रस्तुति दी। पौधशाला-चरण की समेकित पद्धतियों में गोबर की खाद + नीम की खली से संवर्धित ट्राइकोडर्मा मिलाकर तैयार किए गए ऊँची क्यारी पर विषाणु-रोधी किस्मों/संकरों को उगाना, सीड प्रो और नाइलोन नेट कवर (40-60 मेश) के तहत अर्का सूक्ष्मजीवीय मिश्रण या नाइलोन नेट कवर में तैयार किए गए पौध प्रो ट्रे, इसके बाद रोपाइ से पहले प्रणालीगत कीटनाशियों से छिड़काव शामिल हैं। मुख्य खेत में, मिर्ची के पौधों की रोपाई के 10 दिन पहले सीमावर्ती फसल के रूप में दो पंक्तियों में मक्के की बुवाई के बाद कृषि-चाँदी के रंग वाले शीट से पलवार किया जाना चाहिए। रोपाई के बाद, पुष्पण और फल-स्थापन अवस्था तक साप्ताहिक या 10 दिनों के अंतराल पर कीटनाशकों जैसे एसेफेट (1.5 ग्रा./ली.) + नीम के तेल के छिड़काव के बाद स्पाइनफर्मिन (0.5 मि.ली./ ली.) + नीम का तेल या नीम-आधारित कीटनाशक (2.0 मि.ली./ली.) छिड़काव के बाद फिप्रोनिल (1.0 मि.ली./ली.) + नीम के तेल के छिड़काव के बाद इमिडाक्लोप्रिड (0.5 मि.ली./ ली.) + नीम के तेल का छिड़काव किया जाना चाहिए। रोपाई के 30वें और 60वें दिन में 2.5 ग्रा./ली. अर्का सब्जी स्पेशल से दो बार छिड़काव करें। इन विधियों को अपनाने से मिर्ची की उपज में दो से तीन गुना बढोत्तरी प्राप्त की जा सकती है।
प्रस्तुतियों के बाद विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों और विस्तार निदेशालयों के प्रतिभागियों ने अपने-अपने कृषि-जलवायु क्षेत्र में इन प्रौद्योगिकियों की उपयोगिता के बारे में विशेषज्ञों से चर्चा की और प्रतिभागियों ने भा.कृ.अनु.प.-भा.बा.अनु.सं. की किस्मों एवं संकरों की बीजों की उपलब्धता के बारे में पूछा। निदेशक ने सभी प्रतिभागियों को सूचित किया कि बीजों और रोपण-सामग्रियों की ऑनलाइन खरीद की भी व्यवस्था है।
वेबिनार की समाप्ति डॉ. बी. नारायणस्वामी, प्रधान वैज्ञानिक, समाज विज्ञान एवं प्रशिक्षण विभाग के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुई।