बोरॉन की कमी, जिससे फसल प्रभावित होती है, देश की विभिन्न फसलों और मृदाओं में निरंतर रूप से रिपोर्ट की जा रही है। कद्दूवर्गीय अनेक फसलों की बेल का विकास, फलों की संख्या, फल आकार तथा उपज को बढ़ाने हेतु बोरोन का पर्णिल छिड़काव जगजाहिर है। पूर्व में, खीरा (कुकुमिस सेटाइवस एल.) में रांची (झारखंड) की स्थितियों के तहत बोरिक अम्ल की 25ppm मात्रा का 3 पर्णीय छिड़काव किए जाने से काफी बेहतर परिणाम पाए गए। उन बेलों में फलों की संख्या 10.5 प्रति बेल से बढ़कर 12.2 बेल प्राप्त की गई जिनमें बोरिक अम्ल का पर्णीय छिड़काव किया गया था। इसी प्रकार से, फल का वजन भी 368 ग्राम से बढ़कर 412 ग्राम हो गया था। बोरिक अम्ल का पर्णीय छिड़काव नहीं किए जाने से अनुपचारित में 48.6 टन प्रति हैक्टे. की तुलना में, बोरिक अम्ल का पर्णिल छिड़काव किए जाने से 62.5 टन प्रति हैक्टे. की फल उपज प्राप्त की गई। इस प्रौद्योगिकी को गोपालपुर, हेसरघट्टा के श्री उमेश द्वारा बेंगलुरू स्थितियों के तहत कुम्हड़ा (2008), कद्दू (2009) और करेला (2010) में परीक्षित किया गया था। बोरिक अम्ल के अलावा, प्रयोग किए बोरान का अवशोषण बढ़ाने हेतु 0.5 प्रतिशत की दर से छिड़काव मिश्रण में यूरिया भी मिलाया गया था। इस प्रगतिशील किसान ने प्रत्येक फसल में बोरिक अम्ल और यूरिया का छिड़काव कर 50 रूपये प्रति हैक्टे. के खर्चे पर 28.36 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त किया। वर्तमान में, मुथकुर केसरी भद्रादेवकुमार ने भी 1 प्रतिशत यूरिया के साथ-साथ 25ppm बोरिक अम्ल का पर्णीय छिड़काव किया, उन्होंने 8-पत्ती स्तर (रोपण के 25 दिनों के बाद पुष्पण तक (45 दिन) पर 3 बार इसका छिड़काव किया। उन्होंने 56 टन प्रति हैक्टे. (अनुपचारित के तहत 23) की आकलित उपज की तुलना में कुम्हड़ा (फॉटोग्राफ 1) में 1.8 की तुलना में, 2.9 फल प्रति बेल तथा 3.9 कि.ग्रा. से 5.8 कि.ग्रा./फल की औसतन वृद्धि प्राप्त की। श्री कुमार ने इस प्रौद्योगिकी को अपनाकर 49 टन प्रति हैक्टे. की उपज प्राप्त की। आईआईएचआर फार्म में उगाई गई ‘अर्का बहार’ लौकी में फलों की संख्या 2.14 से बढ़कर 3.00 प्रति बेल प्राप्त की गई। फल का वजन 880 ग्राम से बढ़कर 950 ग्राम पाया गया जिससे लौकी के फलों में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
उत्पादन में भारी वृद्धि का श्रेय पराग के बेहतर स्वास्थ्य द्वारा उत्पन्न बढ़ता फल स्थापन था। कद्दू बेल में बोरोन के लाभकारी परिणाम से (i) उर्वरता के पश्चात पराग नली का उचित विकास हुआ (जिसके कारण डिम्बाशय में अंडों की उर्वरता में वृद्धि हुई तथा प्रत्येक बेल में फल-स्थापन में वृद्धि हुई) और (ii) फल के विकास आकार में भारी वृद्धि हुई क्योंकि डिम्बाशय में उर्वरित प्रत्येक अंडे ने ऐसे विकासमूलक हार्मोन छोड़े, जिनसे फल का आकार बढ़ा और फल के वजन में भी काफी बढ़ोतरी हुई। इन दोनों कारकों के परिणामस्वरूप, किसानों को अच्छी उपज प्राप्त हुई। बोरिक अम्ल (17% B), के अलावा, बोरेक्स (11% B) या ‘सोलुबोर’ (20% B) को भी इस प्रयोजन के लिए छिड़काव मिश्रण तैयार करने हेतु उपयोग किया जा सकता है। छिड़काव मिश्रण में 1 प्रतिशत की दर से योगज पदार्थ के रूप में यूरिया मिलाए जाने से पत्तियों द्वारा बोरोन का अवशोषण बढ़ जाता है। यह प्रौद्योगिकी काफी किफायती है और इसे ऐसे कद्दूवर्गीय फसल क्षेत्रों में अंगीकृत किया जा सकता है जहां बोरोन की कमी की समस्या महसूस की जाती है।
मुथकुर, उत्तर बेंगलुरू केसरी भद्रादेव मुमार ने बोरोन का पर्णिल छिड़काव कर कुम्हड़ा (बांई और) की शानदार उपज प्राप्त की।
आईआईएचआर, हेस्सरघाटा में उगायी गई लौकी किस्म ‘अर्का बहार’ में छिड़काव नहीं किए गए अनुपचारित की तुलना में यूरिया (0.5 प्रतिशत ) के साथ बोरिक अम्ल (25ppm) का पर्णीय छिड़काव किए जाने से फल वजन 50 प्रतिशत बढ़ गया।