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अधिकतम उपज हासिल करने हेतु 1 से 10 वर्षों की अवस्था वाले बागों में लगभग 75 ग्रा. नत्रजन + 20 ग्रा. फास्फोरस + 70 ग्रा. पोटाश/वृक्ष/वृक्ष आयु की दर से प्रयोग किए जाने तथा 10वें वर्ष के लिए निर्धारित खुराक का प्रयोग अनुवर्ती वर्षों में किए जाने की सिफारिश की जाती है।
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बौनेपन प्रभाव के लिए, मूलवृंत के रूप में ‘वेल्लईकुलम्बन’ तथा ओज के लिए ‘ओलूर’ किस्मों से न्युसेल्लर मूल के पौधों की सिफारिश की जाती है।
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अक्तूबर-नवंबर के दौरान मृदा को भिगोने के रूप में पेक्लोबुट्राजोल (0.25 ग्रा./वृक्ष/वृक्ष आयु) का प्रयोग किए जाने से फल उपज में वृद्धि हुई, अत्यधिक वानस्पतिक ओज कम हुआ और लगभग पंद्रह दिन पहले फसल पककर तैयार हो गई।
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3 वर्षों तक पेक्लोबुट्राजोल का प्रयोग किए जाने से अपशिष्ट प्रभाव पाया गया। लाभकारी प्रभावों से कोई समझौता किए बिना पेक्लोबुट्राजोल की खुराक का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए या 1 या 2 वर्षों के लिए उसके प्रयोग को रोक दिया जाना चाहिए।
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‘ओलूर’ मूलवृंत पर 1111 वृक्ष प्रति हैक्टे. का उच्च सघन रोपण और 0.125 ग्रा./वृक्ष/वृक्ष आयु की दर से चौथे वर्ष से पेक्लोबुट्राजोल का प्रयोग किए जाने से, जिसे 10वें वर्ष तक स्थिर कर लिया गया था, 6 गुना अधिक उत्पादकता प्राप्त हुई।
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पुराने और अनुपजाऊ वृक्षों के पुनरूद्धार के लिए 5 मी. ऊंचाई पर वृक्षों की छंटाई किए जाने तथा उसके उपरांत 800 ग्रा. नत्रजन + 300 ग्रा. फास्फोरस + 1000 ग्रा. पोटाश + 50 कि. ग्रा. गोबर की खाद + 3 मि. ली. (25% ईसी) पेक्लोबुट्राजोल/मीटर छत्र-फैलाव की सिफारिश की गई।