इस मशरूम किस्म को आईआईएचआर द्वारा भारत में पहली बार वाणिज्यिक उत्पादन के लिए पदार्पित किया गया। इस मशरूम का आरंभिक रंग भूरा है, पर परिपक्वता की अवस्था पर यह फीका पड़ जाता है। इसके गलफड़े और डंठल सफेद हैं और यह बड़े आकार और गूदादार मशरूम है और इसका स्वाद बेहतरीन है। इस किस्म में गुच्छों में मशरूम उगती हैं। 25-30°से. पर 36-48 घंटे और 4°से. पर 4-5 दिन है। इसकी वाणिज्यिक खेती को पाश्चुरीकृत (2 घंटो तक 80-85°C)/ रोगाणुहीन (121°से., 15 मिनटों तक 15 lb दबाव) धान भूसी पर मानकीकृत किया गया। यह 25-30°से. के तापमान की रेंज में अंडजनन करता है। इसके बैग खुल जाने के 4-7 दिनों के बाद इसमें पिनहेड खिलता है और यह 2-3 दिनों के भीतर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है। इस किस्म की फसल अवधि का चक्र अंडजनन से लेकर फसल कटाई तक 37-42 दिन है। इस अवधि के भीतर इसकी औसत जैविक दक्षता 60-80 प्रतिशत प्राप्त की जा सकती है। इसका विपणन ताजे, शुष्क या मशरूम पाउडर के रूप में किया जा सकता है। इसकी प्राकृतिक खेती भारत के किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है, जहां तापमान 20-25°से. के बीच रहता है, तथा सभी क्षेत्रों में नियंत्रित पर्यावरण के तहत की जा सकती है। कोड़ागु, चिकमंगलूर, कोड़ाइकनाल, ऊटी, कोन्नूर, पूर्वोत्तर राज्य, जैसे कि मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और अरूणाचल प्रदेश में इसकी प्राकृतिक खेती पूरे वर्ष की जा सकती है। अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती ऋतु के अनुसार की जा सकती है। इसका विपणन ताजे, शुष्क या मशरूम पाउडर के रूप में किया जा सकता है। भुक्तशेष मशरूम अवस्तर (एसएमएस) का उपयोग केंचुआ खाद बनाने के लिए एक बेहतरीन जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है।