11 गांवों सहित 3500 एकड़ क्षेत्रफल में फैले आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के अंतर्गत काडियम मंडल को प्राय: भारत का नर्सरी हब कहा जाता है क्योंकि यहां अनेक प्रकार की सजावटी एवं फल नर्सरियां मौजूद हैं। नर्सरी उद्यम, आस-पास तथा अन्य स्थानों के 20,000 से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। गुणवत्ता और उपज के आधार पर इस मंडल के अंतर्गत उत्पादित रोपण सामग्री पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध है। वर्ष 2011 से इस क्षेत्र के बड़े नर्सरी किसानों ने मध्य पूर्व देशों को नर्सरी पादपों का निर्यात करना आरंभ किया जिससे यह किस्म अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपनी छाप छोड़ चुकी है। लेकिन नर्सरी उद्यमशीलता के विस्तार के अनुरूप, यह क्षेत्र अमूल्य मृदा, जो नर्सरी पॉटिंग मीडिया के उत्पादन में एक प्रमुख इनपुट है, की हानी की समस्या से जूझ रहा है। इस स्थिति से चौकन्ना होते हुए आंध्र प्रदेश सरकार के बागवानी विभाग ने भाकृअनुप-आईआईएचआर को नर्सरी उत्पादन के लिए इस क्षेत्र के नर्सरी किसानों को वैकल्पिक कार्यक्रम में प्रशिक्षित करने का अनुरोध किया। इस संबंध में भाकृअनुप-आईआईएचआर ने 15 नर्सरी किसानों के एक बैच के लिए अर्का खमीरीकृत कोकोपीट (एएफसी) के उत्पादन और उपयोग पर सितंबर, 2016 के दौरान एक दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्य का आयोजन किया जिसका प्रायोजन बागवानी विभाग द्वारा किया गया था। प्रशिक्षण और सब्सट्रेट के निष्पादन से उत्साहित होकर स्वारापु काडियम गांव के एक युवा एवं प्रगतिशील उद्यमी, श्री नामबाला दुर्गा प्रसाद ने अनेक प्रकार के ताड़ जैसे सजावटी पादपों और पेटूनिया जैसे पुष्प पादपों का प्रयोग के तौर पर उत्पादन करने और अर्का खमीरीकृत कोकोपीट का उत्पादन करना आरंभ किया। उन्होंने यह पाया कि व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कोकोपीट की तुलना में एएफसी में बेहतर जड़-विकास के परिणामस्वरूप, पादपों का विकास बहुत अच्छा हुआ है। उन्होंने एक पॉलीहाऊस आधारित नर्सरी इकाई स्थापित की जिसमें एएफसी का प्रयोग करते हुए सब्जी और पुष्प दोनों प्रकार की पौधों का उत्पादन किया गया। काडियाम में दिनांक 22 नवंबर 2017 को सर आर्थुर काटन नर्सरी फार्मर्स एसोएिशन, काडियम और बागवानी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित बैठक में उन्होंने एएफसी तथा उसके अनेक प्रकार के पादपों के निष्पादन पर क्षेत्र के सहयोगी नर्सरी किसानों के साथ अपना अनुभव साझा किया। सहयोगी किसान कोकोपीट का उत्पादन करने में सहजता, किफायती लागत तथा व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कोकोपीट की तुलना में एएफसी की श्रेष्ठता से काफी प्रेरित हुए। श्री दुर्गा प्रसाद के अनुसार, बेहतर फल स्थापन के अलावा, एएफसी पर उत्पादित पादपों का वजन पारंपरिक पॉटिंग मीडिया पर उगाई गई पादपों की तुलना में लगभग 2 तिहाई कम है, जिसके कारण परिवहन लागत और संचलन व्यय में बचत होती है। डॉ. जी. सेलवाकुमार, प्रधान वैज्ञानिक ने उपस्थित किसानों को संबोधित किया और बेहतर गुणवत्ता वाले पादपों के उत्पादन के लिए एएफसी आरंभ करने तथा क्षेत्र की अमूल्य मृदा को संरक्षित करने का अनुरोध किया। आंध्र प्रदेश सरकार के बागवानी विभाग और भाकृअनुप-आईआईएचआर के अनवरत प्रयास से यह आशा की जाती है कि एएफसी भारत के नर्सरी हब में अपना निरंतर प्रभाव छोड़ता रहेगा।